Sunday 14 April 2013

Mata Ke Nau Roop details

Mata Ke Nau Roop name - Nine Forms Of Goddess name


First day of Navratri – Kalasha Sthapana (Kalasha Pooja) or Ghata Sthapana – Shailaputri Puja
Second day of Navratri – Preeti Dwitiya – Brahmacharini Puja
Third day of Navaratri – Chandrakanta pooja or Chandraghanta puja
Fourth day of Navaratri – Kushmanda pooja
Fifth day of Navratri – Skandamata Puja – Lalitha Panchami
Sixth day of Navratri – Katyayani Puja – Maha Shashti or Durga Shashti
Seventh day of Navratri – Kaalratri Pooja – Durga Saptami or Maha Sapthami
Eighth day of Navaratri – Maha Gauri Pooja – (Durgashtami Puja/Maha Ashtami/Veerashtami)
Ninth day of Navaratri – Siddhidatri Puja – (Mahanavami/Maharnavami or Durga Navami)
Tenth day of Navratri – Aparajitha Puja or Shami Pooja – Vijaya Dashami or Dasara


नवरात्रि का त्योहार नौ दिनों तक चलता है। इन नौ दिनों में तीन देवियों पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ स्वरुपों की पूजा की जाती है। पहले तीन दिन पार्वती के तीन स्वरुपों (कुमार, पार्वती और काली), अगले तीन दिन लक्ष्मी माता के स्वरुपों और आखिरी के तीन दिन सरस्वती माता के स्वरुपों की पूजा करते हैं।

वासन्तिक नवरात्रि के नौ दिनों में आदिशक्ति माता दुर्गा के उन नौ रूपों का भी पूजन किया जाता है। माता के इन नौ रूपों को नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि के इन्हीं नौ दिनों पर मां दुर्गा के जिन नौ रूपों का पूजन किया जाता है वे हैं – पहला शैलपुत्री, दूसरा ब्रह्माचारिणी, तीसरा चन्द्रघन्टा, चौथा कूष्माण्डा, पाँचवा स्कन्द माता, छठा कात्यायिनी, सातवाँ कालरात्रि, आठवाँ महागौरी, नौवां सिद्धिदात्री।

प्रथम दुर्गा : श्री शैलपुत्री





नवरात्री प्रथम दिन माता शैलपुत्री की पूजा  विधि

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्द्वकृत शेखराम।
वृषारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम॥

श्री दुर्गा का प्रथम रूप श्री शैलपुत्री हैं। पर्वतराज

हिमालय की पुत्री होने के कारण ये शैलपुत्री कहलाती हैं।

नवरात्र के प्रथम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है।

गिरिराज हिमालय की पुत्री होने के कारण भगवती का प्रथम

स्वरूप शैलपुत्री का है, जिनकी आराधना से प्राणी सभी

मनोवांछित फल प्राप्त कर लेता है।


द्वितीय दुर्गा : श्री ब्रह्मचारिणी





नवरात्री दूसरा दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा  विधि

“दधना कर पद्याभ्यांक्षमाला कमण्डलम।
देवी प्रसीदमयी ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥“

श्री दुर्गा का द्वितीय रूप श्री ब्रह्मचारिणी हैं। यहां

ब्रह्मचारिणी का तात्पर्य तपश्चारिणी है। इन्होंने भगवान

शंकर को पति रूप से प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी।

अतः ये तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से विख्यात हैं।

नवरात्रि के द्वितीय दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है।

जो दोनो कर-कमलो मे अक्षमाला एवं कमंडल धारण करती है। वे

सर्वश्रेष्ठ माँ भगवती ब्रह्मचारिणी मुझसे पर अति प्रसन्न

हों। माँ ब्रह्मचारिणी सदैव अपने भक्तो पर कृपादृष्टि रखती

है एवं सम्पूर्ण कष्ट दूर करके अभीष्ट कामनाओ की पूर्ति

करती है।


तृतीय दुर्गा : श्री चंद्रघंटा



नवरात्री तीसरा दिन माता चंद्रघंटा की पूजा  विधि


“पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैयुता।
प्रसादं तनुते मद्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥“

श्री दुर्गा का तृतीय रूप श्री चंद्रघंटा है। इनके मस्तक पर

घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा

देवी कहा जाता है। नवरात्रि के तृतीय दिन इनका पूजन और

अर्चना किया जाता है। इनके पूजन से साधक को मणिपुर चक्र के

जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं तथा

सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।

इनकी आराधना से मनुष्य के हृदय से अहंकार का नाश होता है तथा

वह असीम शांति की प्राप्ति कर प्रसन्न होता है। माँ

चन्द्रघण्टा मंगलदायनी है तथा भक्तों को निरोग रखकर उन्हें

वैभव तथा ऐश्वर्य प्रदान करती है। उनके घंटो मे अपूर्व

शीतलता का वास है।


चतुर्थ दुर्गा : श्री कूष्मांडा




नवरात्री चौथे दिन माता कूष्माण्डा की पूजा  विधि

”सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधानाहस्तपद्याभ्यां कुष्माण्डा शुभदास्तु में॥“

श्री दुर्गा का चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा हैं। अपने उदर से

अंड अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें

कूष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है। नवरात्रि के

चतुर्थ दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। श्री कूष्मांडा

की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं।

इनकी आराधना से मनुष्य त्रिविध ताप से मुक्त होता है। माँ

कुष्माण्डा सदैव अपने भक्तों पर कृपा दृष्टि रखती है। इनकी

पूजा आराधना से हृदय को शांति एवं लक्ष्मी की प्राप्ति होती

हैं।


पंचम दुर्गा : श्री स्कंदमाता




नवरात्री पंचमी दिन स्कंदमाता की पूजा  विधि

“सिंहासनगता नित्यं पद्याञ्चितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥“

श्री दुर्गा का पंचम रूप श्री स्कंदमाता हैं। श्री स्कंद

(कुमार कार्तिकेय) की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता

कहा जाता है। नवरात्रि के पंचम दिन इनकी पूजा और आराधना की

जाती है। इनकी आराधना से विशुद्ध चक्र के जाग्रत होने वाली

सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं।

इनकी आराधना से मनुष्य सुख-शांति की प्राप्ति करता है। सिह

के आसन पर विराजमान तथा कमल के पुष्प से सुशोभित दो हाथो वाली

यशस्विनी देवी स्कन्दमाता शुभदायिनी है।


षष्ठम दुर्गा : श्री कात्यायनी




नवरात्री पूजा - छठे दिन माता कात्यायनी की पूजा  विधि

“चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानव घातिनी॥“

श्री दुर्गा का षष्ठम् रूप श्री कात्यायनी। महर्षि

कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां

पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए वे कात्यायनी कहलाती

हैं। नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी पूजा और आराधना होती है।

इनकी आराधना से भक्त का हर काम सरल एवं सुगम होता है।

चन्द्रहास नामक तलवार के प्रभाव से जिनका हाथ चमक रहा है,

श्रेष्ठ सिंह जिसका वाहन है, ऐसी असुर संहारकारिणी देवी

कात्यायनी कल्यान करें।

सप्तम दुर्गा : श्री कालरात्रि





नवरात्री पूजा - सप्तमी दिन माता कालरात्रि की पूजा  विधि

“एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥“

श्रीदुर्गा का सप्तम रूप श्री कालरात्रि हैं। ये काल का नाश

करने वाली हैं, इसलिए कालरात्रि कहलाती हैं। नवरात्रि के

सप्तम दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। इस दिन साधक को

अपना चित्त भानु चक्र (मध्य ललाट) में स्थिर कर साधना करनी

चाहिए।

संसार में कालो का नाश करने वाली देवी ‘कालरात्री’ ही है।

भक्तों द्वारा इनकी पूजा के उपरांत उसके सभी दु:ख, संताप

भगवती हर लेती है। दुश्मनों का नाश करती है तथा मनोवांछित फल

प्रदान कर उपासक को संतुष्ट करती हैं।


अष्टम दुर्गा : श्री महागौरी





नवरात्री की अष्टमी दिन माता महागौरी की पूजा विधि

“श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बर धरा शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥“

श्री दुर्गा का अष्टम रूप श्री महागौरी हैं। इनका वर्ण

पूर्णतः गौर है, इसलिए ये महागौरी कहलाती हैं। नवरात्रि के

अष्टम दिन इनका पूजन किया जाता है। इनकी उपासना से असंभव

कार्य भी संभव हो जाते हैं।

माँ महागौरी की आराधना से किसी प्रकार के रूप और मनोवांछित

फल प्राप्त किया जा सकता है। उजले वस्त्र धारण किये हुए

महादेव को आनंद देवे वाली शुद्धता मूर्ती देवी महागौरी

मंगलदायिनी हों।


नवम् दुर्गा : श्री सिद्धिदात्री




नवरात्री पूजा की नवमी दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा विधि

“सिद्धगंधर्वयक्षादौर सुरैरमरै रवि।
सेव्यमाना सदाभूयात सिद्धिदा सिद्धिदायनी॥“

श्री दुर्गा का नवम् रूप श्री सिद्धिदात्री हैं। ये सब

प्रकार की सिद्धियों की दाता हैं, इसीलिए ये सिद्धिदात्री

कहलाती हैं। नवरात्रि के नवम दिन इनकी पूजा और आराधना की

जाती है।

सिद्धिदात्री की कृपा से मनुष्य सभी प्रकार की सिद्धिया

प्राप्त कर मोक्ष पाने मे सफल होता है। मार्कण्डेयपुराण में

अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व एवं

वशित्वये आठ सिद्धियाँ बतलायी गयी है। भगवती सिद्धिदात्री

उपरोक्त संपूर्ण सिद्धियाँ अपने उपासको को प्रदान करती है।

माँ दुर्गा के इस अंतिम स्वरूप की आराधना के साथ ही नवरात्र

के अनुष्ठान का समापन हो जाता है।

इस दिन को रामनवमी भी कहा जाता है और शारदीय नवरात्रि के अगले

दिन अर्थात दसवें दिन को रावण पर राम की विजय के रूप में

मनाया जाता है। दशम् तिथि को बुराई पर अच्छाकई की विजय का

प्रतीक माना जाने वाला त्योतहार विजया दशमी यानि दशहरा

मनाया जाता है। इस दिन रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के पुतले

जलाये जाते हैं।

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